सर्द हवायें










सर सर करतीं सर्द हवाएं
जब जबरन भीतर घुस आयें
ऐसे में यह मन क्यों चाहे
आकर यादें पैर दबायें ।

पैर दबाते मौन रहें तो
इससे अच्छा पास न आयें
अपनी तो चाहत बस इतनी
जो कुछ बीता उसे सुनाएँ
अब तक याद नहीं क्यों आई
क्या था कारण उसे बताएं।

सुनते सुनते हम सो जाएँ
जो खोया सपनों में पायें
खुले आँख जब नयी भोर में
सूरज का रथ सजाता पायें
सपना झूंठा या जग झूंठा
पूछ रहा मन क्या बतलाएं।



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