प्रश्नोत्तर ( दैनिक जागरण में प्रकाशित )

प्रश्नोत्तर
सभी प्रशन
भाग्यशाली नहीं होते
लौट आते हैं अधिकाँश
अनुत्तरित
उदास मन घायल तन
क्यों कि वे होते तो हैं
यक्षप्रश्नों की तरह
पर उनेंह
युधिष्ठर नहीं मिलते

ऐसा ह़ी एक प्रशन
मैंने भी
किसी से किया
पर वह
घाटी में दी हुई आवाज की तरह
घायल होकर लौट आया
और बोला
मान्यवर !
कभी घाटी में प्रश्न मत भेजना
यहाँ पर किए गए प्रश्न
अक्सर चोटिल हो लौटते हैं
उनके उत्तर नहीं मिलते

कुछ होते हैं
लंगड़ी भिन्न की तरह
जिनके हल के लिए
एक उमर कम पड़ती है
और ऐसे प्रश्नों की संख्या
विषम ह़ी रहती है

कभी - कभी यह मन
सूने आकाश की ओर देख कर
प्रश्न करता है
हे भगवन !
अब तुम्ही बताओ
की सीधे और सरल प्रश्नों के उत्तर
सीधे सीधे क्यों नहीं मिलते ?

बी एल गौड़

होली पर एक कविता "अब कहाँ रंग हैं चटकीले "

अब कहाँ रंग हैं चटकीले

होली में कहाँ ठिठोली अब
अब कहाँ रंग हैं चटकीले
हैं जब से श्याम गए मथुरा
तब ही से नयना हैं गीले

सब ग्वाल -बाल बेहाल हुए
अब फीके रंग गुलाल हुए
सब सखी हुईं बैरागिन सी
अब सूने सब चौपाल हुए
और श्याम तुमाहरे बिन अब तक
राधा-कर हो न सके पीले

सब चंदन और गुलाल लिए
रंग नीले पीले लाल लिए
अब लौट चले हैं घर अपने
सब मन मैं एक मलाल लिए
अब घर आँगन पगडंडी सब
कुछ लगते हैं सीले सीले

अब लौटें श्याम तो हो होरी
हो गोपीन के संग बरजोरी
सब सखियाँ राधा प्यारी की
और श्याम बीच हो झक झोरी
जब चले श्याम की पिचकारी
तब लहंगा -चूनर हों गीले
बी एल गौड़

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