होली पर एक कविता "अब कहाँ रंग हैं चटकीले "

अब कहाँ रंग हैं चटकीले

होली में कहाँ ठिठोली अब
अब कहाँ रंग हैं चटकीले
हैं जब से श्याम गए मथुरा
तब ही से नयना हैं गीले

सब ग्वाल -बाल बेहाल हुए
अब फीके रंग गुलाल हुए
सब सखी हुईं बैरागिन सी
अब सूने सब चौपाल हुए
और श्याम तुमाहरे बिन अब तक
राधा-कर हो न सके पीले

सब चंदन और गुलाल लिए
रंग नीले पीले लाल लिए
अब लौट चले हैं घर अपने
सब मन मैं एक मलाल लिए
अब घर आँगन पगडंडी सब
कुछ लगते हैं सीले सीले

अब लौटें श्याम तो हो होरी
हो गोपीन के संग बरजोरी
सब सखियाँ राधा प्यारी की
और श्याम बीच हो झक झोरी
जब चले श्याम की पिचकारी
तब लहंगा -चूनर हों गीले
बी एल गौड़

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