आवाजों वाला घर

आवाजों वाला घर




जी हाँ

मैं घर बनाता हूँ

लोह लक्कड़

ईंट पत्थर

काठ कंकड़ से खड़ा कर

द्वार पर पहरा बिठाता हूँ



जी हाँ

मैं घर बनाता हूँ

एक दिन

मेरे भीतर का मैं

बाहर आया

चारो ओर घूमकर

चिकनी दीवारों पर

बार बार हाथ फेरकर

खिड्किओं और दरवाजों को

कई कई बार

खोलकर -बंदकर

संतुष्टि करता हुआ बोला :

क्या ख़ाक घर बनाते हो

मैं बताता हूँ तुम्हे

घर बनाना

घर बनता है

घर के भीतर की आवाजों से :

चढ़ती उतरती सीडिओं पर

घस-घस

बर्तनों की टकराहट

टपकते नल की टप टप

द्वार पर किसी की आहट

रसोई से कुकर की सीटी

स्नानघर से हरी ॐ तत्सत

पूजाघर से -टनन टनन

आरती के स्वर

आँगन से बच्चों की धकापेल

दादा की टोका टाकी

ऊपरी मन से

दादी की कोसा काटी

और इसी बीच



महाराजिन का पूछना

"बीबी जी क्या बनाऊं ?

जब तक यह सब कुछ नहीं

तब तक घर घर नहीं

मत कहना दोबारा

कि मैं

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