अपनापन एक मुक्त छंद

अपनापन


जब भी खोलता हूँ

वातायन के कपाट

पाटा हूँ

दूर तलक फैला घना वन


इसके अतिरिक्त

कोहरा-सन्नाटा

उजाले के साथ मिलकर

साजिश रचता अन्धेरा

वन्य जीवों की बातचीत

पक्षियों के गीत

गीदड़ और भेडियों का

छेड़ा हुआ राग

आरोह-अवरोह

उलझन-ऊहापोह


इससे पहले क़ि यह परिवेश

मेरे भीतर प्रवेश करे

चल पड़ता हूँ

साथ लिए

तन-मन -चेतना -ध्यान , और

अर्जित ज्ञान

किसी पदचाप के पीछे

सोचता हुआ

शायद यहीं कहीं छिपा है

वह परिवेश मनभावन

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