ek nai kavita " dahez "

दहेज़

जिंदगी के साथ - साथ मुझे
कुछ दर्द भी
दहेज़ में मिले |

दाता की उदारता पर
न कोई प्रश्न्चिनंह न गिला
क्यों कि यह सिलसिला
सदिओं से चला आ रहा है
और दर्द कि नदी में आज तक
कोई भी
अपनी मर्जी से नहीं बहा है
साथ ही एक बात और
कि कुछ दोस्त भी यहाँ
अज़ब गज़ब मिले |

बातें
चाहे विगत की हों
वर्तमान अथवा भविष्य  की
छोड़ जातीं हैं निशाँ
मानस पटल पर
अब क्या करे यह मन
डूबा रहे आकंठ
सोच की नदी में
या किसी जीवित नदी के साथ
सागर की ओर चले
जहां नदी को मिले समुद्र
और इसे
तीर पर बैठा इसका मीत मिले |

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