ओस के कण
पांखुरी कि देह पर
ओस के कण देखकर
एक पल को यों लगा
ज्यों किसी ने बीनकर आंसू किसी के
ला बिखेरे फूल पर |
कुछ देर में आकर यहाँ
दिनमान छू लेगा इनेहं
ये भाप बन उड़ जायेंगे
रूप धरकर बादलों का
फिर गगन में छाएंगे
आ झुकेंगे ये धरा के भाल पर
या सिमिटकर सात रंग में
जा तानेंगे पाहनों के ढाल पर
या बनेंगे बूँद फिर से
जा गिरेंगे फूल पर या शूल पर |
मुझ से कहा था फूल ने
तू ध्यान दे इस बात पर
जब जिंदगी है चार दिन
तो रात कि मत बात कर
तू झूमकर इसको बिता
तू जिंदगी के गीत गा
तू सो बरस के साधनों की
भूलकर मत भूल कर
जब कदाचिन माँ फलेषु
कर्म का औचित्त्य क्या
इस पार तो सब सत्य है
उस पार का अस्तित्त्व क्या ?
तू चोट कर भरपूर ऐसी
रूड़ियों के मूल पर |
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